बुधवार, 20 अप्रैल 2022

ज्ञानी - ज्ञानीभक्त

ज्ञानी - ज्ञानीभक्त 

ज्ञानी 

ज्ञान मार्ग विलक्षण मार्ग है। सीधा मार्ग है। आत्मज्ञान। ब्रम्हज्ञान । ब्रम्हज्ञान अर्थात अस्तित्व जो संपूर्ण है। अस्तित्व स्वयं आत्मन, साक्षी अनुभवकर्ता रूप में स्वयं में होने वाले परिवर्तनों का अनुभव ले रहा है।अस्तित्व को समझने के लिए अनुभवकर्ता और अनुभव दो भाग करने पड़ते हैं। अन्यथा अद्वैत है। उसी प्रकार जैसे समुद्र में उत्पन्न हजारों लहरें और जल एक ही है।

मेरा तत्व अनुभवकर्ता है, ये मेरा मूलरूप है, अविनाशी, निराकार और निर्गुण है। चैतन्य है, शिव है। 

मेरे में ही होने वाले परिवर्तन, प्रकट होकर जगत, शरीर और मन के रूप में मुझे दिखते हैं, मेरे अनुभव में हैं। ये जगत शरीर मन सब चित्त है, शक्ति है, देवी है।

चैतन्य और चित्त एक ही हैं, दोनों अस्तित्व हैं। शिव और शक्ति एक ही हैं, और दोनों अस्तित्व हैं।

मैं भी अस्तित्व हूँ। मैं अस्तित्व में हूँ। मेरे गुरु और गुरुक्षेत्र भी अस्तित्व में हैं। जिन्होंने मुझे अस्तित्व से साक्षात्कार करवाया। ये संपूर्ण जगत अस्तित्व में है। ये समस्त देवी देवता अस्तित्व में हैं। समस्त इष्ट, संत, महात्मन, अवतार, राम, कृष्ण, ऋषि, मुनि, विभूतियां इसी अस्तित्व में हैं। अस्तित्व ही विश्वरूप भगवान है। विश्वरूप परमात्मा है। इसी का दर्शन कृष्ण नें अर्जुन को दिव्य ज्ञान दृष्टि देकर करवाया था। यही परब्रम्ह है। 

अस्तित्व जिसको घटित हो जाय वो धन्य है। घटित होने के लिए आत्मन होना है। अस्तित्व होना है। यही साक्षात्कार है। 

ज्ञानी इस परम स्थिति को प्राप्त होता है। 

ज्ञानीभक्त 

भक्ति मार्ग में लगे हुए साधक जब सद्गुरु के समक्ष आते है तो सद्गुरु अपनी विवेक बुद्धि देकर ज्ञान दृष्टि से अपने समक्ष खड़ा कर उसके इष्ट का सत्य स्वरुप ब्रम्ह रुप, अस्तित्व रुप का उद्घाटन करते हैं तब उस भक्त को अपने इष्ट का वास्तविक रूप का पता चलता है। और उसका सारा पुराना अवधारणा युक्त अज्ञान, उसकी अज्ञान से भरी हुई मान्यताएं ध्वस्त हो जाती हैं। 

अब उसकी वास्तविक भक्ति जागृत होती है। जिधर दृष्टि जाती है अपने इष्ट के चैतन्य रुप की चेतना ही सर्वत्र प्रतीत होती है। स्वयं भी उसी में समाहित हो जाता है। यही भक्ति की पराकाष्ठा है। 

जहाँ भगवान स्वयं कहते हैं मेरा ऐसा ज्ञानी भक्त मेरा अनन्य भक्त है। मेरे में और उसमें कोई भेद नहीं है। 

इसी भक्ति के लिए प्रभु राम कहते हैं कि इसी भक्ति के आधीन ज्ञान और विज्ञान हैं। ये संत, सद्गुरु की कृपा से ही होता है। 

भक्ति तात अनुपम सुख मूला । मिलहि जे संत होहि अनुकूला ॥                    सो सुतंत्र अवलंब न आना। तेहि आधीन ग्यान बिग्याना॥

तो ये है ज्ञानी और ज्ञानी भक्त की महिमा। 

ॐ श्री गुरुवे नमः।



 

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहोत ही अच्छा लेख है👍👍
    धन्यवाद🌺🌺🙏🙏

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  2. उत्तर
    1. जी धन्‍यवाद, शिवम जी । ये सब गुरु कृपा ही है ।
      🙏🙏🌹🌺

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