आज कुछ विशेष मनन करते हैं।
आध्यात्मिक जीवन में एक ही लक्ष्य है स्वयं का, आत्मन का अध्ययन, आत्मन अथवा साक्षी भाव में स्थित होकर ही हम आनंद में रहते हैं। मूलतः यही हमारा विश्राम स्थल है। हमारा होम टाउन है।
हम बाजार घूमने गए, नौकरी करने गए, धन कमाने गए, यहां तक कि मनोरंजन के लिए सिनेमा घर गए, पार्क घूमने गए। पचासों काम एक साथ ले लिए। सब अथवा किसी एक में भी हमे कुछ सामायिक सुख मिलता है। परन्तु इसके साथ एक थकान चढ़ती है, श्रम अनुभूत होता है। एक बेचैनी छा जाती है।
उसके बाद, फिर घर आ कर ही विश्राम मिलता है। सुख मिलता है। चैन मिलता है। थकान से छुटकारा मिलता है।
यही स्थिति हमारे मूल स्वरुप की है। हमारे साक्षी, चैतन्य स्वरुप की है। आनंद स्वरुप हैं। इसी आनंद में क्या हुआ...?
अनुभव का आनंद लेते लेते, बदलते हुए अनुभवों के चक्रव्यूह में आ गए, माया की विलक्षण प्रक्षेपण शक्ति, प्रतीत मात्र में ऐसा खो गए अनुभव कर्ता रूप का विस्मरण के साथ साथ सूक्ष्म अहम वृत्ति ने स्वामित्व ले लिया, वही मैं शरीर, मैं मन, मैं बुद्धी, मैं भावनायें, मैं सम्वेदना, मेरी वस्तुएँ, मेरा मकान, मेरा मेरा, मैं मैं में ऐसा फंसा, संसारी हो कर रह गया। यही संसार मेरा घर है ऐसी माया ने आकर्षित कर लिया। जो नश्वर है वही सत्य लगने लगा। मेरे सत्य, शुद्ध, बुद्ध, आत्मन का विस्मरण और हजारों जन्मों का केवल भटकाव नहीं, अज्ञान रुपी कूड़े का भण्डार और एकत्र कर लिया।
परतों पर परतें जमती चली गईं। बोझा बढ़ता गया। माया का, चित्त शक्ति का आनंद लेने की बजाय, माया ही होकर, उसी उतार चढ़ाव में अब सुखी और दुखी होने लगा। धीरे-धीरे ये दुःख बढ़ने लगा।
दुःख निवारण का उपाय ढूंढते ढूंढते कुछ कृपा हुई। आध्यात्मिक वातावरण मिला। धीरे-धीरे जगत से ध्यान खिंचा। सात्विक भाव की ओर आकर्षण बढ़ा।
गुरुदेव से मिलना हुआ। और उन्होंने धीरे-धीरे अपने ज्ञान से, विचारों से, अपने अपरोक्ष अनुभवों के आधार पर मेरे अज्ञान का नाश किया। इस अज्ञान में, मैं ही शरीर हूँ, मन हूँ, बुद्धी हूँ, भावनाएं, संवेदनाएँ हूँ, ये घर, उसमें रखी वस्तुएँ मेरी हैं... इस माया को ही सत्य मान लिया था। कभी बुद्धि से विचार किया ही नहीं कि इस नाशवान संसार को सत्य समझ लिया, इसी अज्ञान को नष्ट किया। माया की वास्तविकता को बताया।
और उसके बाद स्वयं का शुद्ध, बुद्ध, सत्य स्वरुप सिद्ध किया, प्रकट हुआ।आत्मन, और ब्रम्हन का ज्ञान कराते हुए ब्रम्ह की पूर्णतः, अस्तित्व, अनुभव क्रिया जो निरंतर हो रही है, उसको बताया।
मैं धन्य हुआ। प्रणाम है गुरु जी को, गुरुक्षेत्र को। कृतज्ञ हूँ उनका। जिनकी कृपा से आनंद की अनुभूति निरन्तर हो रही है।
ॐ श्री गुरु वे नमः।
ओम श्री गुरूवे नम:🙏🙏
जवाब देंहटाएंधन्यवाद🌺🌺🙏🙏
बहुत-बहुत धन्यवाद जी, ॐ श्री गुरुवे नमः ।
हटाएंबहुत सुंदर लेख है। जो सब जोड रहे हैं. हम सब मिथ्या है, नश्वर है। ना "मैं" कुछ है और ना मेरा कुछ है। धन्यवाद आपका।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद रीना जी, सब गुरु कृपा है ।
हटाएंॐ श्री गुरुवे नमः ।
बहुत ही सुंदर लेख है रमाकांत जी,आपका बहुत धन्यवाद 🙏🏼🌸
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद शुभम जी, सब गुरु कृपा है ।
हटाएंॐ श्री गुरुवे नमः ।
अतिसुंदर लेख है रमाकांत जी 🙏🌻
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद डॉ राजेश्वरी जी, सब गुरु कृपा है ।
हटाएंॐ श्री गुरुवे नमः ।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद शैल जी, सब गुरु कृपा है ।
हटाएंॐ श्री गुरुवे नमः ।
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