श्रीमद्भगवतगीता में, श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं..
"जिनका अज्ञान वो सारा, मिटा है आत्म ज्ञान से।
उनका वो सूर्य सा ज्ञान, प्रकाशे है ब्रम्ह रूप को ॥" (५/१६)
जिनका अज्ञान रूपी अंधकार, आत्म ज्ञान रूपी सूर्य के प्रकाश से मिट गया है, उनको उसी ज्ञान प्रकाश से ब्रम्ह रूप, अर्थात सर्वत्र समष्टि स्वरुप प्रकाशित हो, दृश्यमान हो जाता है।
" वहीं बुद्धि, वहीं इष्ट, वहीं निष्ठा वहीं रमे।
पापों को ज्ञान से धोया, पुनर्जन्म उसे नहीं॥" (५/१७)
इस रीति से ब्रम्ह रूप का साक्षात्कार होने के पश्चात उनकी बुद्धि उसी ब्रम्ह रूप में स्थित रहती है। वही ब्रम्ह उनका इष्ट रहता है। उसी ब्रम्ह में उनकी एक निष्ठा रहती है। उसी ब्रम्ह में वो रमण करते हैं। इस प्रकार ज्ञान में रहने से उनके समस्त पाप नष्ट हो जाने के कारण उन्हें पुनर्जन्म नहीं रहता।
विद्या विनय से पूर्ण ब्राम्हण, गज गाय में।
चांडाल-कुत्ते में देखे,विद्यावान् ब्रम्ह एक ही॥ (५/१८)
वे विद्यावान् आत्मविद्, विद्या तथा विनम्रता संपन्न ब्राह्मण में, हाथी, गाय, चांडाल और कुत्ते में भी एक ही ब्रह्म को सर्वत्र समदृष्टी से देखते हैं।
(संदर्भ : भगवान मायानंद चैतन्य प्रणीत श्रीमद्भगवद्गीतोपनिषद्)
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