मानव जीवन का सदुपयोग:
मानव जीवन बहुमूल्य है। क्योंकि इसमें सारे साधन हैं अपने स्वयं, आत्मन को जानने के लिए, अपने मूल स्वरुप को जानने के लिए और सम्पूर्ण अस्तित्व को जानने के लिए।पांच ज्ञानेन्द्रियों, अन्य सूक्ष्म ज्ञानेन्द्रियों, मन, बुद्धी, विवेक बुद्धि, प्रज्ञा इत्यादि उपलब्ध हैं।
ये साधन अन्य जीवों में नहीं हैं।
इसलिए ऐसा सनातन शास्त्रों में कहा गया है बड़े भाग्य होते हैं तभी मानव शरीर प्राप्त होता है।
इसलिए मानव शरीर मिलने के बाद अगर आत्म ज्ञान और ब्रम्ह ज्ञान में स्थित नहीं हुए तो ये जीवन व्यर्थ ही गया। इसका सदुपयोग नहीं हुआ।
इस ज्ञान के बिना भोग में व्यतीत किया जीवन पशुवत ही है।
इसलिये बुद्धिमान जीव सदैव प्रयासरत रहता है कि कहाँ और कैसे सत्संग प्राप्त हो, सद्गुरु मिले, और इस ज्ञान को प्राप्त कर मुक्ति और सुख की अनुभूति हो।
यही मानव जीवन, चाहे स्त्री या पुरुष, कोई शरीर हो, का मुख्य लक्ष्य है। बाकी जीवन में होने वाले कार्य केवल उत्तरजीविता, अथवा कर्म बंधन काटने के लिए होते हैं।
आत्मन में स्थित होकर हम व्यष्टि भाव से समष्टि में आ जाते हैं, क्योंकि आत्मन सर्वत्र है, असीम है।
ब्रम्हन भाव में स्थित होकर हम परमेष्टि में स्थित होते हैं जहां अस्तित्व है, संपूर्ण है, ये सारी प्रकट सृष्टि की प्रतीति उसी आत्मन चैतन्य के प्रकाश में ही है।
यहां अद्वैत है, कोई दूसरा है नहीं। जिस प्रकार संपूर्ण जगत में बनने वाले समस्त आभूषणों का सार स्वयं स्वर्ण है, रूप नाम भिन्न भिन्न है, लेकिन सार या तत्व एक स्वर्ण ही है।
उसी प्रकार ब्रम्हन में तत्व शून्य है आत्मन है चैतन्य है, और उसी तत्व आत्मन में उसी तत्व शून्य आत्मन से उसी तत्व शून्य आत्मन पर यह परिवर्तन शील माया भासमान हो रही है, प्रतीत हो रही है।
अद्भुत है, आलौकिक है।
मानव जीवन में इस अद्भुत आलौकिक में स्थित होने के लिये प्रयासरत रहना चाहिए। अपने हृदय और बुद्धि में इसकी तीव्र जिज्ञासा जागृत करनी चाहिए। सद्गुरु को ढूंढना चाहिए। सत्संग के अवसर ढूंढते रहना चाहिए।
आत्म ज्ञान प्राप्त कर मानव जीवन सफल बनाने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए।
श्री गुरूवे नमः
Beautifully explained.Our real purpose is guided so clearly..
जवाब देंहटाएंThanks Veenu ji
हटाएंमनुष्य योनि में हमे ५ ऋण भी चुकाने होते है , १ मातृ ऋण २_ पितृ ऋण ३_ गुरु ऋण ४_ भूमि ऋण ५_ धर्म ऋण ।
जवाब देंहटाएंजी हाँ, धन्यवाद, आप सही कह रहे हैं।
हटाएंआत्म ज्ञान के बाद इस ऋण को चुकाने में किये कर्म में श्रम अथवा कठिनाई की अनुभूति नहीं होती,
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कुंवर सिंह जी
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