मंगलवार, 1 फ़रवरी 2022

मैं कौन? प्रश्न का महत्व

 मैं कौन? प्रश्न का महत्व 


मैं कौन, मैं क्या? ये प्रश्न बहुत सरल है, सहज है और अध्यात्म में बहुत महत्वपूर्ण है।

गुरुओं नें, संतों ने, ज्ञानी जनों ने, इस प्रश्न का उपयोग किया है संभावित जिज्ञासुओं साधकों, मुमुक्षुओं, अन्य साधारण सरल मानवी के आध्यात्मिक उत्थान और उन्नति के लिए।

वास्तव में मनुष्य शरीर ही है जिसमें योग्यता है, साधन हैं, बुद्धि, विवेक, प्रज्ञा की चित्त की परत है आध्यात्मिक उन्नति के लिए। अपने वास्तविक मूल स्वरूप तक पहुंचने की। अपने वास्तविक मैं तक पहुंचने की। आत्म ज्ञान की, उसके बाद माया और ब्रम्ह ज्ञान तक की। ये साधन और योग्यता अन्य प्राणियों में नहीं है।

 परन्तु इसका रास्ता इस सरल प्रश्न से होकर जाता है.. मैं कौन हूँ? इसके आगे के प्रश्नों माया और ब्रम्ह ज्ञान का मनुष्य को शुरू में पता नहीं होता। वो प्रश्न गुरु ही उत्प्रेरित करता है। आगे की वार्ताओं में। 

जिन्होंने आत्म ज्ञान, ब्रम्ह ज्ञान सिद्ध कर लिया है ऐसे गुरुजन, सिद्धजन समाज में सब अपने ही रूप हैं, इस भाव से सदैव प्रयासरत रहते हैं कि यह ज्ञान सबको आसानी से सुलभ हो।

साधारण मानव अपने जीवन में सांसारिक क्रिया कलाप में, उत्तर जीविता में, समाज में, अपने अज्ञान के कारण स्वयं के मूल स्वरूप को भूल गया है।

उसने शरीर, मन ही मान लिया है अपने को, इसलिये अपना जीवन पशुवृत्ति, भोग वृत्ति और जातिवृत्ति के दलदल में ही व्यतीत कर रहा है। इसके परिणाम स्वरूप दुख और बंधन में रहता है।

वो भूल जाता है कि वो स्वयं साक्षी है, आत्मन है, चैतन्य है, सत्य है, आनन्द स्वरूप है, मुक्त है। 

ज्ञानीजन, गुरुजन ये प्रश्न मैं कौन, मैं क्या... वार्ताओं में, सत्संग में, चर्चाओं में बीज की भाँति बिखरते रहते हैं..जिसको सुनकर सम्भावित, भविष्य में बनने वाले साधक के अंतर्मन में पड़ने के बाद यथा समय अंकुरित होते हैं। और वो इसके उत्तर उत्तर ढूंढने की प्रबल इच्छा के साथ गुरु से भेंट कर अपनी विकास यात्रा तेज करते हैं।

नये जिज्ञासु इन प्रश्नों को बीज स्वरुप तुरंत पकड़ते है गुरूशरण में पहुँच कर ज्ञान पथ पर आगे बढ़ जाते हैं।

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