गुरुवार, 4 अगस्त 2022

विश्व शांति का स्त्रोत भारतीय संस्कृति और अध्यात्म.. भाग 2

 गतांक से आगे... (2)

(3) भारतीय संस्कृति में वैचारिक क्षमता की चर्चा में एक और श्लोक है.. 

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदम् पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

वह परब्रह्म पुरुषोत्तम परमात्मा सभी प्रकार से पूर्ण है। यह जगत भी पूर्ण है। यह (जगत) पूर्ण उस पूर्ण पुरुषोत्तम से ही उत्पन्न हुआ है। 

इस प्रकार परब्रह्म की पूर्णता से, जगत पूर्ण प्रकट (पृथक) किया होने पर भी वह परब्रह्म परिपूर्ण है। 

अर्थात उस पूर्ण में से, इस पूर्ण को निकाल देने पर भी, वह पूर्ण ही शेष रहता है।

ज्ञान मार्ग की आसान भाषा में,

अस्तित्व, अनुभव क्रिया पूर्ण है । अनुभव भी पूर्ण है। 

अस्तित्व पूर्ण में से अनुभव पूर्ण को निकाल देने से जो शेष अनुभवकर्ता है, वो भी पूर्ण है।


हजारों वर्ष पूर्व जो सूत्र कहे हुए हैं, वो सार्वभौमिक हैं। सर्व कालिक हैं। भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठ वैचारिक क्षमता को प्रकट करते हैं।

(4) वसुधैव कुटुम्बकम् 

ये भारतीय सनातन संस्कृति का मूल संस्कार तथा विचारधारा है जो महा उपनिषद सहित कई ग्रन्थों में लिपिबद्ध है। 

इसका अर्थ है- धरती ही परिवार है,

ये वाक्य, केवल मानव जाति ही नहीं, सभी जीवों के लिए प्रकट है। संपूर्ण पर्यावरण संरक्षण को अपने में समेटे हुए, सभी जातियों, संप्रदायों, के लिए यह वाक्य अभेद दृष्टि से लागू होता है।

(5)

ॐ असतो मा सद्गमय।

तमसो मा ज्योतिर्गमय।

मृत्योर्मामृतं गमय।।

हे प्रभु, हम सभी को असत्य से दूर सत्य की ओर ले चलो, घोर अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो, मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो।

प्रार्थना भी केवल अपने लिए नहीं, सबके लिए की गई है। ये पराकाष्ठा है उच्च विचारों की।

(6)

ऊँ सहनाववतु सहनौभुनक्तु सहवीर्यं करवावहै, तेजस्विना वधीतमस्तु मां विद्विषावहै। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।

अर्थ : हम सभी एक-दूसरे की रक्षा करें। हम साथ-साथ भोजन करें। हम साथ-साथ काम करें। हम साथ-साथ उज्ज्वल और सफल भविष्य के लिए अध्यनन करें। हम कभी भी एक-दूसरे से द्वेष न करें।

ये श्लोक भी व्यक्तिगत अथवा व्यक्तिनिष्ठ नहीं है।

(7)

उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत ।

क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति ।।

(कठोपनिषद् )

अर्थ: उठो, जागो, और जानकार श्रेष्ठ पुरुषों के सान्निध्य में ज्ञान प्राप्त करो । विद्वान् मनीषी जनों का कहना है कि ज्ञान प्राप्ति का मार्ग उसी प्रकार दुर्गम है जिस प्रकार छुरे के पैना किये गये धार पर चलना ।

ये सारे श्लोक कुछ उदाहरण हैं श्रेष्ठ विचारों के, जो हमारे ऋषियों मुनियों ने अण्वेषित किये, प्रयोग में लाए और समाज में प्रसारित किए। समाज को शुद्ध बनाने का प्रयास किया।

शेष... अगले भाग में 

4 टिप्‍पणियां:

  1. सरल शब्दों में सुंदर व्याख्या, इन अद्भुत श्लोकों को पुनः स्मरण करने के लिए धन्यवाद। ज्ञान मार्ग में आने के बाद अब ज्यादा समझ में आते हैं।

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    1. धन्यवाद पूजा जी, आपने सही कहा ज्ञान मार्ग में आकर अधिक स्पष्ट हैं ये श्लोक।
      🙏🙏🌹🌹

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  2. सरल एवं सुन्दर व्याख्या 👌रमाकांत जी 🙏

    जवाब देंहटाएं

विश्व शांति का स्त्रोत भारतीय संस्कृति और अध्यात्म भाग 3

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