सोमवार, 28 फ़रवरी 2022

सद्गुरु आश्वासन एवं ज्ञान अधिकारी अनाधिकारी (श्रीमद्भगवतगीता)

सद्गुरु आश्वासन एवं ज्ञान अधिकारी अनाधिकारी: 

आइए आज श्रीमद्भगवतगीता के कुछ श्लोकों का आनंद लेते हैं।

भगवान श्रीकृष्ण अस्तित्व / ब्रम्ह भाव में स्थित हैं। इसलिए वो विश्वं विष्णु एवं विश्वरूप सद्गुरु हैं।

अध्याय १८ श्लोक ६६

"छोड़ के सब ही धर्म, थाम तूं मुझ एक को।

शोक छोड़, निकालूँगा, पापों से सब मैं तुझे ॥"

कृष्ण अर्जुन से कहते हैं... जाति, पंथ, सम्प्रदाय आदि भ्रामक धर्म छोड़ कर से तू मेरे विश्वंविष्णु एवं विश्वरूप का ही निश्चय कर, सेवा युक्त हो और शोक का त्याग कर, इससे मैं तुझको कर्मफल भाव युक्त पापों से बचा लूंगा। 


"ये ज्ञान अतपस्वी को, न बताना अभक्त को। 

सुने नहीं, करे मेरी निंदा जो, उसको नहीं ॥" (१८/६७)

ये ज्ञान उनको नहीं कहना चाहिए जो सात्विक तपस्या नहीं कर सकते, जो अभक्त (योग अनुभव से रहित), जिनकी श्रवण में भी एकाग्रता नहीं और मेरी/गुरू निंदा करने वाले हों। 


" गुह्य का गुह्य ये ज्ञान जो मेरे भक्त से कहे,। 

वो मेरे श्रेष्ठ भक्ति से, मुझमें मिल जायगा ॥ (१८/६८)

ये अपरोक्ष गुह्य ज्ञान, उसके इच्छुक, व्याकुल मेरे भक्त से कहेगा, वो मेरे विश्वरूप की इस अनन्य भक्ति द्वारा विश्वरूप में तद्रूप हो जाएगा। 




4 टिप्‍पणियां:

विश्व शांति का स्त्रोत भारतीय संस्कृति और अध्यात्म भाग 3

गतांक से आगे...  व्यष्टि, समष्टि और परमेष्टि अब इतने शुद्ध और श्रेष्ठ विचारों, सूत्रों, श्लोकों की श्रंखला कहाँ से आयी? इसका आधार क्या है? च...